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ज़माने को जाने ये क्या हो गया है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ज़माने को जाने ये क्या हो गया है।
हुआ आदमी आज खुद से जुदा है॥
न जाने कहाँ मंजिलें ज़िन्दगी की
बिना लक्ष्य के आदमी चल रहा है॥
झुकी जा रही हैं हया से निगाहें
हुआ आज मौसम बड़ा खुशनुमा है॥
किसी को नहीं मुफ़लिसी यूँ सताये
कि हर तीसरे रोज़ रोज़ा रखा है॥
यही फ़लसफ़ा है यही पाक़ आयत
ख़ुदा है मुहब्बत-मुहब्बत खुदा है॥
सँभालो उसे या पटक तोड़ डालो
मगर झूठ कहता नहीं आइना है॥
ठहरना नहीं है किसी मोड़ पर भी
अजब ज़िन्दगानी का ये रास्ता है॥