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ज़माने को सही राहें दिखाती उँगलियाँ देखो / शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'

ज़माने को सही राहें दिखाती उँगलियाँ देखो।
सभी की ख़ामियाँ खुलकर गिनाती उँगलियाँ देखो॥

उठाती हैं गिराती हैं यही दीवार अपनों में।
ख़ुशी छूकर हँसी तो ग़म छुपाती उँगलियाँ देखो॥

अधूरे चित्र में पूरी कहानी ज़िन्दगानी की।
लिये नव तूलिका कब से सजाती उँगलियाँ देखो॥

कहीं सम्बन्ध कोई खा न लें संदेह की बातें।
तभी बे-खौफ़ होकर सच बताती उँगलियाँ देखो॥

'अधर' पर बाँसुरी ले प्रीति का संसार रचती हैं।
कभी गिरिधर कभी मोहन बनाती उँगलियाँ देखो॥