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ज़माने भर को खले मैं तुम्हारी बात करूँ / ऋषिपाल धीमान ऋषि

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ज़माने भर को खले मैं तुम्हारी बात करूँ
रक़ीब हाथ मले मैं तुम्हारी बात करूँ।

ख़ुदा, नसीब , चमन, दुश्मनी, दुनिया
किसी की बात चले मैं तुम्हारी बात करूँ।

वो चांद, फूल, बहारों की बात करता है
जो चर्चा मुझसे चलेमैं तुम्हारी बात करूँ।

ज़माना कुछ भी कहे अब , मुझे नहीं परवा
जले जहां तो जले,मैं तुम्हारी बात करूँ।

कोई तो पूजा करे, कोई मय पिये, लेकिन
हरेक शाम ढले, मैं तुम्हारी बात करूँ।