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ज़माने में कोई अपना नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जमाने में कोई अपना नहीं है।
मगर फिर भी कोई शिकवा नहीं है॥
जताते हैं सभी अपनत्व लेकिन
कोई भी साथ में रहता नहीं है॥
कोई आ कर हमारा हाथ थामे
फ़क़त है आरजू सपना नहीं है॥
उठा है दर्द दिल में बेबसी का
पुकारूँ पर कोई सुनता नहीं है॥
चले आओ बड़े बेचैन हैं हम
ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं है॥