भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़रा-ज़रा का जीवन / प्रमोद कुमार
Kavita Kosh से
कहीं कोई आदमी देखा
बन गया काम भर
ज़रा-सा आदमी,
दानवो के बीच
ज़रा-सा दानव,
दर्शकों में ज़रा-सा दर्शक
खेलों में ज़रा-सा खिलाड़ी,
मंदिरों में ज़रा-सा आस्तिक
गोष्ठियों में ज़रा-सा नास्तिक,
देश के लिए ज़रा-सा नागरिक
अख़बारों में ज़रा-सा समाचार,
बच्चों के लिए ज़रा-सा पिता
औरत के लिए ज़रा-सा मर्द,
ज़रा-सा व्रत, ज़रा-सा प्रसाद,
इस ज़रा-ज़रा से मिला
एक बहुत लम्बा
ज़रा-ज़रा का जीवन