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ज़रा-सी जान के दुश्मन बहुत हैं / विवेक बिजनौरी

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ज़रा सी जान के दुश्मन बहुत हैं
दिल-ए-नादान के दुश्मन बहुत हैं

हमारी जान हो सो जान लो तुम,
हमारी जान के दुश्मन बहुत हैं

मियाँ इंसान की तो बात छोड़ो,
यहाँ भगवान के दुश्मन बहुत हैं

सिपाही चाहता है भाई-चारा,
मगर सुल्तान के दुश्मन बहुत हैं

बचा के रखना इन होंठों पे इसको,
कि इस मुस्कान के दुश्मन बहुत हैं