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ज़रा भी अगर फ़िक्र में धार होगी / ओंकार सिंह विवेक
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ज़रा भी अगर फ़िक्र में धार होगी,
मियां!शायरी ख़ुद असरदार होगी।
सफ़र का सभी लुत्फ़ जाता रहेगा,
रहे-ज़ीस्त गर कुछ न दुश्वार होगी।
डरेंगे जो रखते हुए पाँव जल में,
भला कैसे उनसे नदी पार होगी।
हो सकता है बेशक परेशान वो कुछ,
मगर सच की हरगिज़ नहीं हार होगी।
लगाएँगे भाषण में कुछ ऐसा तड़का,
सभा में बड़ी उनकी जयकार होगी।
जो समझे सियासत की चालों को उनकी,
ये जनता कब इतनी समझदार होगी।
'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये दुनिया न हरगिज़ मददगार होगी।