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ज़रा सोचो / श्रवण कुमार सेठ
Kavita Kosh से
धरती के नीचे है क्या
क्या है गगन के ऊपर,
चिड़ियों-सा ये मन मेरा
उड़ता गगन को छू कर,
कैसे तेज चमकते हैं ये
देखो सूरज काका,
नभ की काली चादर में
तारे किसने टांका,
उमड़-घुमड़ कर बादल ये
क्यों बूंदों में गिरते हैं
और असंख्य तारे ये सारे
टिम-टिम-टिम क्यों करते हैं
कैसे नन्हें बीजों से ये
ऊँचे बृक्ष निकलते हैं
हो जाती है शाम सुबह
सूरज कैसे हैं ढलते हैं
क्यों भागती हैं ये नदियाँ
कल-कल-कल-कल करते
नहीं एक-से रहते मौसम,
रहते सदा बदलते ।
अपने मन के सागर में गोते
ज़रा लगाओ,
इन प्रश्नों के हल ढूंढों ज्ञान
पुंज फैलाओ ।