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ज़रूरी काम / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी में बहुत से काम हैं
सबसे ज़रूरी काम है सुन्दर दिखना
स्त्रियों के सामने यह तलब कुछ ज़्यादा ही
बढ़ जाती है
आदमी हो जाता है सजग
उँगुलियों से सँवारने लगता है बाल
और सुन्दर दिखने की कोशिश करता है
चालीस के बाद यह आदत छूटने लगती है
वह दाम्पत्य में उलझ जाता है
एक मकड़ी उसके लिए बुनने लगती है जाल
उसे आईने से चिढ़ होने लगती है
उसे लगता है आईने में दिखने वाला चेहरा
उसका नहीं है
यह किसी दूसरे आदमी का चेहरा है
एक ज़माने में जो चीज़ें सुन्दर थी उन पर
जमने लगती है धूल