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ज़रूरी / महेन्द्र भटनागर

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इस स्थिति को बदलो

कि आदमी आदमी से डरे,
इन हालात को हटाओ
कि आदमी आदमी से नफ़रत करे !

हमारे बुज़ुर्ग
हमें नसीहत दें कि
बेटे, साँप से भयभीत न होओ
हर साँप ज़हरीला नहीं होता,
उसकी फूत्कार सुन
अपने को सहज बचा सकते हो तुम।
हिंस्र शेर से भी भयभीत न होओ
हर शेर आदमखोर नहीं होता,
उसकी दहाड़ सुन
अपने को सहज बचा सकते हो तुम !

पशुओं से, पक्षियों से
निश्छल प्रेम करो,
उन्हें अपने इर्द-गिर्द सिमटने दो
अपने तन से उन्हें लिपटने दो,
कोशिश करो कि
वे तुमसे न डरें
तुम्हें देख न भगें,
पंख फड़फड़ा कर उड़ान न भरें,
चाहे वह
चिड़िया हो, गिलहरी हो, नेवला हो !

तुम्हारे छू लेने भर से बीरबहूटी
स्व-रक्षा हेतु
जड़ बनने का अभिनय न करे !
तुम्हारी आहट सुन
खरगोश कुलाचें भर-भर न छलाँगे
सरपट न भागे !

लेकिन
दूर-दूर रहना
सजग-सतर्क
इस आदमजाद से !
जो-
न फुफकारता है, न दहाड़ता है,
अपने मतलब के लिए
सीधा डसता है,
छिप कर हमला करता है !
कभी-कभी यों ही
इसके-उसके परखचे उड़ा देता है !
फिर चाहे वह
आदमी हो, पशु हो, पक्षी हो,
फूल हो, पत्ती हो, तितली हो, जुगनू हो !

अपना, बस अपना
उल्लू सीधा करने
यह आदमी
बड़ा मीठा बोलता है,
सुनने वाले कानों से मधुरस घोलता है !

लेकिन
दबाए रखता है विषैला फन,
दरवाजे पर सादर दस्तक देता है,
'जयराम जी‘ की करता है !
तुम्हारे गुण गाता है !
और फिर
सब कुछ तबाह कर
हर तरफ से तुम्हें तोड़ कर
तडपने-कलपने छोड़ जाता है !

आदमी के सामने ढाल बन कर जाओ,
भूखे-नंगे रह लो
पर, उसकी चाल में न आओ !
ऐसा करोगे तो
सौ बरस जिओगे, हँसोगे, गाओगे !

इस स्थिति को बदलना है
कि आदमी आदमी को लूटे,
उसे लहूलुहान करे,
हर कमज़ोर से बलात्कार करे,
निर्द्वन्द्व नृशंस प्रहार करे,
अत्याचार करे !
और फिर
मंदिर, मसज़िद, गिरजाघर, गुरुद्वारा जाकर
भजन करे,
ईश्वर के सम्मुख नमन करे !