भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़वाले-शब में किसी की सदा निकल आये / इरफ़ान सिद्दीकी
Kavita Kosh से
ज़वाले- शब् में किसी की सदा निकल आये
सितारा डूबे सितारा-नुमा निकल आये
अजब नहीं कि ये दरिया नज़र का धोका हो
अजब नहीं कि कोई रास्ता निकल आये
ये किसने दश्ते-बुरीदा की फसल बोई थी
तमाम शहर में नख़्ल-दुआ निकल आये
बड़ी घुटन है, चराग़ों का क्या ख़याल करूँ
अब इस तरफ कोई मौजे-हवा निकल आये
खुदा करे सफे-सरदारगाँ न हो ख़ाली
जो मैं गिरूँ तो कोई दूसरा निकल आये