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ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए
बन के ख़ुश्बू फ़ज़ा में बिखर जाइए
ये तो सच है नहीं कुछ कमी आप में
हुस्ने-फितरत से भी कुछ सँवर जाइए
गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो
राहे पुरख़ार से यूं गुज़र जाइए
ठीक है, मुझ से मिलना, न चाहें अगर
मेरे दुश्मन के हरगिज़ न घर जाइए
जा रहे हैं तो, दे जाइए ज़ह्र कुछ
आप इतना करम मुझ पे कर जाइए
वो पिघल जायेगा हाले ग़म देखकर
उसके कूचे में बा-चश्मे-तर जाइए
हुक्म पर आपके ख़न्दा-ज़न है 'रक़ीब'
आप उसकी अदाओं पे मर जाइए