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ज़हर जुबां में अपनी जमकर घोले निकलेंगे / अशोक अंजुम

ज़हर जुबां में अपनी जमकर घोले निकलेंगे
आस्तीन में पलकर और सपोले निकलेंगे

हमने दोस्त समझकर उनका तुहफ़ा किया कबूल
पता न था गुलदस्ते में बम-गोले निकलेंगे

इसे जिताओ, उसे जिताओ, सब इक जैसे हैं
राजनीति के खाली सारे झोले निकलेंगे

वे रस्ते जो मेहनतकश को मखमल लगते हैं
साहब जी के पांव में वहीं फफोले निकलेंगे

जिनके मुंह से मुश्किल से दो बोल निकलते हैं
बोतल खुलते ही वे सब बड़बोले निकलेंगे