भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़हर भरे हैं गीत मेरे / हेनरिख हायने
Kavita Kosh से
ज़हर भरे हैं गीत मेरे
हो सकते कैसे इतर ये ?
ज़हर दिया है भर तुमने मेरे
पुष्पित पल्लवित जीवन में ।
ज़हर भरे हैं गीत मेरे
हो सकते कैसे इतर ये ?
लोट रहे हैं साँप दिल पर मेरे ,
और थामे हूँ मैं तुम्हें, मेरी प्रिय ।।
मूल जर्मन से अनुवाद -- प्रतिभा उपाध्याय