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ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
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ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है।
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है।
अवाम आँखे बिछाता है कि हल होंगे सवाल
अजब निज़ाम है उलटे सवाल देता है।
हमेशा ख़ुद पे लगी तोहमतें छुपाने को
वो अपने रौब का सिक्का उछाल देता है।
ख़ुद ही फँस जाते हैं आ आ के परिंदे उसमे
इतने रंगीन वो रेशम के जाल देता है।
उसी को सौंप दो सारी मुसीबतें अपनी
वो एक लम्हे में सब कुछ संभाल देता है।
वो ज़ुल्म करते रहें हम कोई गिला न करें
ये एहतियात तो मुश्किल में डाल देता है।
उसी को मिलते हैं मोती भी यक़ीनन इक दिन
जो गहरे जा के समंदर खंगाल देता है।
जो अपने वक़्त में नफ़रत से मार डाले गए
उन्ही की आज ज़माना मिसाल देता है।