भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ह्न और दिल में जंग जारी थी / अलका मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ह्न और दिल में जंग जारी थी
जाग कर मैंने शब गुज़ारी थी

दिल गया तो गया ये जां भी गई
वो नज़र इस क़दर शिकारी थी

बस गया था ख़याल ओ ख़्वाब में वो
वो ख़ुमारी भी क्या ख़ुमारी थी

उसने चेहरे को पढ़ लिया होगा
दिल में महफ़ूज़ राज़दारी थी

जो तेरे इंतज़ार में गुज़री
इक वही रात मुझपे भारी थी

अपनी जाँ का उतार कर सदक़ा
मैंने उसकी नज़र उतारी थी