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ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़ / अब्दुल ग़फ़ुर 'नस्साख़'

ज़ाहिरन मौत है क़ज़ा है इश्क़
पर हक़ीक़त में जाँ-फ़ज़ाँ है इश्क़

देता है लाख तरह से तस्कीन
मर्ज़-ए-हिज्र में दवा है इश्क़

पूछते हैं बुल-हवस से वो
मुझ से पूछे कोई के क्या है इश्क़

ता-दम-ए-मर्ग साथ देता है
एक महबूब-ए-बा-वफ़ा है इश्क़

इश्क़ है इश्क़ जिधर देखो
कुफ़्र ओ ईमाँ का मुद्दआ है इश्क़

देख 'नस्साख़' गर न होता कुफ़्र
कहते बे-शुबा हम ख़ुदा है इश्क़