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ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा / फ़ाज़िल जमीली

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ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
हर गुज़रता दिन किसी की याद ले जाने लगा

एक महफिल से उठाया है दिल-ए-ना-शाद ने
एक महफिल में दिल-ए-ना-शाद ले जाने लगा

किस तरफ़ से आ रहा है कारवाँ असबाब का
किस तरफ़ ये ख़ान-माँ-बर्बाद ले जाने लगा

इस सितारा मिल गया था रात की तमसील में
आसमानों तक मेरी फ़रियाद ले जाने लगा

मैं ही अपनी कै़द में था और मैं ही एक दिन
कर के अपने आप को आज़ाद ले जाने लगा