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ज़िंदगी का बना सहारा भी / महेश चंद्र 'नक्श'

ज़िंदगी का बना सहारा भी
और उन के करम ने मारा भी

इश्क़ ही फिर पलट के आ न सका
हुस्न-ए-मग़रूर ने पुकारा भी

कौन डूबा जो यूँ पशेमाँ है
मौज-ए-तूफ़ाँ भी तेज़ धारा भी

हम ने दुनिया की राह पर चलते
दिल का होता अगर गवारा भी

उम्र भर तीरगी से खेले हैं
कोई हँसता हुआ सितारा भी

फूल रोते हैं ख़ार हँसते हैं
देख गुलशन का ये नज़ारा भी

दिल की दुनिया तो जगमगा उट्ठे
‘नक्श’ भड़के कोई शरारा भी