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ज़िंदगी कुछ इस तरह / नीलेश माथुर
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जिंदगी यूँ ही गुज़र जाती है 
बातों ही बातों में 
फिर क्यों न हम 
हर पल को जी भर के जियें,
खुशबू को 
घर के इक कोने में कैद करें 
और रंगों को बिखेर दें 
बदरंग सी राहों पर, 
अपने चेहरे से 
विषाद कि लकीरों को मिटा कर मुस्कुराएँ 
और गमगीन चेहरों को भी 
थोड़ी सी मुस्कुराहट बाँटें,
किसी के आंसुओं को 
चुरा कर उसकी पलकों से 
सरोबार कर दें उन्हें 
स्नेह कि वर्षा में,
अपने अरमानों की पतंग को 
सपनो कि डोर में पिरोकर
मुक्त आकाश में उडाएं 
या फिर सपनों को 
पलकों में सजा लें,
रात में छत पर लेटकर 
तारों को देखें 
या फिर चांदनी में नहा कर 
अपने ह्रदय के वस्त्र बदलें 
और उत्सव मनाएँ, 
आओ हम खुशियों को 
जीवन में आमंत्रित करें 
और ज़िन्दगी को 
जी भर के जियें!
	
	