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ज़िंदगी जैसी तवक्को थी नहीं / शहरयार
Kavita Kosh से
ज़िंदगी जैसी तवक्को थी नहीं, कुछ कम है
हर घडी होता है अहसास कहीं कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक्शे के मुताबिक़ यह ज़मीन कुछ कम है
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफी है, यकीन कुछ कम है
अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ ज़्यादा है, कहीं कुछ कम है
आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
यह अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है