Last modified on 30 मई 2012, at 09:43

ज़िक्र करते रहे पसीनों का / पुरुषोत्तम प्रतीक

ज़िक्र करते रहे पसीनों के
शब्द ये सब तमाशबीनों के

हाथ से सिर्फ़ छू दिया होगा
दिल धड़कने लगे मशीनों के

छान डाला तमाम सर्राफ़ा
रंग मिलते नहीं नगीनों के

गीत गाने लगा समन्दर भी
देखकर काफ़िले सफ़ीनों के

पास का कुछ नहीं दिखाती हैं
देख लो ढंग दूरबीनों के