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ज़िदगी श्वेत वस्त्रों की तरह नहीं / नीलोत्पल

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ज़िंदगी श्वेत वस्त्रों की तरह नहीं हो सकती

उसमें कुछ किरचें हैं, खुरचन है, मरोड है
चुभन है, दंश है, प्यार है, प्यार के छलावे हैं
रास्ते हैं बंद रास्तों की ओर जाते,
दोहरापन, छोटी खिड़कियां जो सिर्फ़ खुलती हैं
भीतर की ओर, रंग हैं लेकिन जंगलों में,
उड़ती धूल हमारी आंँखों में,
पत्तों सी खामोशियां,
टूटी मेहराबों पर लटकते सवाल,
कुछ थोड़ी उम्मीदें, विदा लेते हाथ

स्मृतियां हैं रेत में दबी,
दौड़ है बिना रास्तों की,
औरतें हैं अपमान और ऊब से भरीं,
दरवाज़े हैं, दरवाज़ों के भीतर सिर्फ़ परछाईयां

न दावे हैं, न विश्वास
न ठोस, न तरल
एक अलग ही क़िस्म का इंसान
जो रुकता नहीं चोट पर,
उसमें रक्त है हिंसाओं से भरा,
मृत्यु शय्याएं हैं अपनों के बाणों से गुंथी
धर्म खड़े हैं अधर्म के रास्तों पर

आस्थाएं हैं दूसरों की बताई,
ईश्वर है, ईश्वर के बनाए सच
आदमी झल्लाता है, शोर करता है
वह सच चाहता है
वह सच सिर्फ़ अपने लिए चाहता है

ज़िंदगी सिर्फ़ सच नहीं हो सकती
वह लथड़ाती है, पिघलती है
फटती है ज्वालामुखी की तरह

ज़िदगी को बने रहना चाहिए
अगर तुम चाहते हो
अगर तुम चाहते हो तो
इसे श्वेत वस्त्र मत पहनाओ।