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ज़िदगी सादा–सहज हो / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
ज़िदगी सादा–सहज हो, कुछ बनावट कम तो हो
प्यार फैले, नफ़रतों का शोर कुछ मद्धम तो हो।
बात हम अपने पड़ोसी से करें कैसे शुरु
कुछ फ़जा का रंग बदले, कुछ नया मौसम तो हो।
सीख लेंगे लोग इक दूजे पे देना जान भी
रहनुमा के हाथ में ऐसा कोई परचम तो हो।
मुश्किलें दिखलाएँगी खुद मंजिलों का रास्ता
हौसला तो हो दिलों में, बाज़ुओं में दम तो हो।
तार दिल के जोड़कर रखना ज़माने से ज़रुर
जब किसी के अश्रु निकलें आँख तेरी नम तो हो।