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ज़िन्दगानी का सफ़र सब बे मज़ा हो जाएगा / रंजना वर्मा

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ज़िन्दगानी का सफ़र सब बे मज़ा हो जाएगा।
हमसफ़र अपना अगरचे बेवफ़ा हो जाएगा॥

पुर ख़तर इस रेहगुज़र पर मुश्किलों से जूझ कर।
जो बढ़ेगा वह क़दम ख़ुद नक़्शे-पा हो जाएगा॥

उसकी फ़ुर्क़त में तड़प कर बढ़ गईं बे चैनियाँ।
वो न ग़र आया तो अपना रतजगा हो जाएगा॥

हम इकट्ठा क्यूँ करें सामान सदियों का यहाँ।
एक पल में सिलसिला सारा फ़ना हो जाएगा॥

रास्ते ख़ामोश हैं फिर भी अकेले चल पड़ें।
साथ होंगे लोग इक दिन क़ाफ़िला हो जाएगा॥

दिन फ़िसलते जा रहे हैं ज़िन्दगी के हाथ से।
क्या पता अब कब क़ज़ा से राब्ता हो जाएगा॥

गर यही विश्वास दिल में करवटें लेता रहे।
आज है पत्थर वही इक दिन ख़ुदा हो जाएगा॥