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ज़िन्दगी, इंजन बिना ही रेल / श्याम निर्मम
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ज़िन्दगी, इंजन बिना ही रेल
ठेल, जितना ठेल सकता, ठेल !
पटरियाँ
बचपन-जवानी हैं
पास रहकर भी न मिल पातीं,
दूसरे का दुख समझती हैं पर
किसी से कह नहीं पातीं
है समस्या विष-बुझे शर सी ,
झेल, जितना झेल सकता झेल !
है, गरीबी —
टूटने का नाम
सुख लगाए कहकहों के दाम,
जब बिखरना ही नियति उसकी
फ़र्क़ क्या तब, हो सुबह या शाम
पापड़ों-सा हाल ख़स्ता है,
बेल, जितना बेल सकता, बेल !
है कभी —
जाना, कभी आना
चिन्तकों-सा इसे दुहराना,
आदमी है जन्म का प्यासा
मौत से कब रहा अनजाना
उम्र के अन्तिम पड़ाव पर,
खेल, जितना खेल सकता, खेल !