ज़िन्दगी, ज़िन्दगी / अरसेनी तरकोफ़स्की / असद ज़ैदी
1.
अपशकुनों को मैं नहीं मानता, न मुझे है
अमंगल की आशंका। बदनामी हो या ज़हर, कोई शै
मुझे डरा नहीं सकती। मौत नाम की कोई चीज़ है ही नहीं ।
हर कोई अमर है । हर चीज़ अमर है ।
मौत सत्रह की उम्र में हो या सत्तर की
इसमें घबराना क्या । जो कुछ है यहीं है आज और अभी, रौशनी यहीं पर है;
न मृत्यु कहीं है न अन्धकार ।
हम सब मौजूद हैं समुद्रतट पर;
जब अमरत्व का झुण्ड मछलियों की तरह तैरता
इधर से गुज़रेगा मैं ही फेंकूँगा जाल ।
2.
तुम हो अगर मकीन किसी मकान के — तो वह गिरेगा नहीं ।
मैं किसी भी शताब्दी को पुकारकर पास बुला लूँगा ।
फिर उसमें दाख़िल होकर एक घर बना लूँगा ।
अकारण नहीं कि तुम्हारे बच्चे और बीवियाँ
मेरे साथ एक ही मेज़ पर बैठे हैं,
और वहीं बैठे हैं तुम्हारे पुरखे और पौत्र प्रपौत्र भी :
भविष्य यहीं इसी वक़्त निर्मित हो रहा है,
अगर मैं अपना हाथ ज़रा भी ऊपर उठाऊँ,
रौशनी की पाँचों शुआएँ तुम्हारे साथ बनी रहेंगी ।
हर रोज़ मैंने अपनी हँसली पर लकड़ी के कुन्दे की तरह
अतीत को उठाए रखा,
मैंने समय को ज़मीन की पैमाइश करने वाली ज़ंजीर से नापा
और ऐसे उसे पार किया किया जैसे पार कर रहा होऊँ उराल पर्वतमाला ।
3.
मैंने युग को अपने मुताबिक़ बना लिया ।
हम दक्षिण की ओर चल पड़े, स्तेपी पर धूल उड़ाते हुए;
लम्बी घास क्रोधित थी; टिड्डा नाचता था,
पहले उसने घोड़े की नाल को छुआ – फिर भविष्यवाणी की,
एक सन्त की तरह, कि मेरा नाश होने वाला है ।
मैंने अपनी तक़दीर को ज़ीन के साथ कस दिया;
और आज भी, इस आने वाले वक़्त में,
एक बच्चे की तरह रकाब में पैर डालकर खड़ा हूँ ।
मुझे अमरत्व मिला है तो, बस,
मेरा रक्त एक युग से दूसरे युग तक प्रवाहमान रहेगा ।
मैं तब भी गर्माई भरे एक सुरक्षित कोने के लिए
अपना जीवन क़ुरबान करने को तैयार होता,
लेकिन जीवन की उड़ती हुई सुई है कि
मुझे धागे की तरह पिरोती चली जाती है इस संसार में ।
(1965)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी
—
(किटी हण्टर-ब्लेअर और वर्जीनिया राउण्डिंग के अँग्रेज़ी अनुवादों पर आधारित । रूसी मूल की मदद से रश्मि दोरैस्वामी द्वारा सम्पादित।)
लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
Arseny Tarkovsky
Life, Life
1
I don't believe in omens or fear
Forebodings. I flee from neither slander
Nor from poison. Death does not exist.
Everyone's immortal. Everything is too.
No point in fearing death at seventeen,
Or seventy. There's only here and now, and light;
Neither death, nor darkness, exists.
We're all already on the seashore;
I'm one of those who'll be hauling in the nets
When a shoal of immortality swims by.
2
If you live in a house - the house will not fall.
I'll summon any of the centuries,
Then enter one and build a house in it.
That's why your children and your wives
Sit with me at one table, -
The same for ancestor and grandson:
The future is being accomplished now,
If I raise my hand a little,
All five beams of light will stay with you.
Each day I used my collar bones
For shoring up the past, as though with timber,
I measured time with geodetic chains
And marched across it, as though it were the Urals.
3
I tailored the age to fit me.
We walked to the south, raising dust above the steppe;
The tall weeds fumed; the grasshopper danced,
Touching its antenna to the horse-shoes - and it prophesied,
Threatening me with destruction, like a monk.
I strapped my fate to the saddle;
And even now, in these coming times,
I stand up in the stirrups like a child.
I'm satisfied with deathlessness,
For my blood to flow from age to age.
Yet for a corner whose warmth I could rely on
I'd willingly have given all my life,
Whenever her flying needle
Tugged me, like a thread, around the globe.
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
Арсений Тарковский
Жизнь, жизнь
I
Предчувствиям не верю, и примет
Я не боюсь. Ни клеветы, ни яда
Я не бегу. На свете смерти нет:
Бессмертны все. Бессмертно всё. Не надо
Бояться смерти ни в семнадцать лет,
Ни в семьдесят. Есть только явь и свет,
Ни тьмы, ни смерти нет на этом свете.
Мы все уже на берегу морском,
И я из тех, кто выбирает сети,
Когда идет бессмертье косяком.
II
Живите в доме — и не рухнет дом.
Я вызову любое из столетий,
Войду в него и дом построю в нем.
Вот почему со мною ваши дети
И жены ваши за одним столом, -
А стол один и прадеду и внуку:
Грядущее свершается сейчас,
И если я приподымаю руку,
Все пять лучей останутся у вас.
Я каждый день минувшего, как крепью,
Ключицами своими подпирал,
Измерил время землемерной цепью
И сквозь него прошел, как сквозь Урал.
III
Я век себе по росту подбирал.
Мы шли на юг, держали пыль над степью;
Бурьян чадил; кузнечик баловал,
Подковы трогал усом, и пророчил,
И гибелью грозил мне, как монах.
Судьбу свою к седлу я приторочил;
Я и сейчас в грядущих временах,
Как мальчик, привстаю на стременах.
Мне моего бессмертия довольно,
Чтоб кровь моя из века в век текла.
За верный угол ровного тепла
Я жизнью заплатил бы своевольно,
Когда б ее летучая игла
Меня, как нить, по свету не вела.
1965 г.