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ज़िन्दगी: अखबार की छोटी-सी खबर! / मंजुश्री गुप्ता

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पिछले महीने की
अखबार की रद्दी बेचते समय
अखबारों की हेडलाइन्स पर
सरसरी निगाह दौड़ाती रही
‘भयंकर ठंड में 15 लोगो की मृत्यु’
‘घर में घुस कर वृद्ध दंपत्ति की हत्या’
‘पत्नी की गला दबा कर हत्या‘
‘आभूषणों की लूट - महिला की हत्या‘
‘डॉक्टर की लापरवाही से प्रसूता की मृत्यु‘
और फिर अचानक बाढ़ सी आ गई
किसी अनामिका की बहादुरी के यशगान की
दामिनी, निर्भया और अमानत आदि
अनेक नामों से
जिसके सपने कुचल दिये
निर्दयता से दुराचारियों ने।
ऐसे कितनी ही अनामिकायें
मरती हैं रोज
गर्भ में, सुसराल में या अस्पतालों में
जल कर या जहर खा कर
या दुराचारियों की शिकार होकर।
बन जाती हैं - अखबार की
एक छोटी सी खबर
कुछ दिन हंगामा होता है
अभी मैं खुश हो रही हूँ
कि मैं इन सबमें नही हूँ
और जीवित हूँ
किन्तु आशंकित हूँ कि क्या पता
कल कोई आकर
चुपके से मेरी गर्दन दबा दे
मेरी ही घर में
और मैं बन जाऊं
अखबार की छोटी सी खबर
रद्दी में बिकने के लिये!