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ज़िन्दगी अपनी हुई है मैल कानों की / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
चीख़ बनते जा रहे
हम सब खदानों की
हो गए हैं शोकधुन
बजते पियानो की ।
कल तलक सुनते रहे जो
आज बहरे हैं
आँसुओं के बोल जिनके
पास ठहरे हैं
ज़िन्दगी अपनी हुई है
मैल कानों की ।
देखते जब शब्द के
बारीक छिलके खोल
देश लगता रह गया
बनकर महज भूगोल
एक साजिश है खुली
ऊँचे मकानों की ।