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ज़िन्दगी के चन्द लम्हे मैं चुरा कर आई हूँ / देवी नांगरानी

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ज़िन्दगी के चन्द लम्हे मैं चुरा कर आई हूँ
मौत को भी मीत मैं अपना बनाकर आई हूँ

सैकड़ों थे यूँ तो मुझको आपसे शिकवे-गिले
आपके इसरार पर सारे भुलाकर आई हूँ

ज़िन्दगी से जूझना मुश्किल हुआ इस दौर में
ख़ुदकुशी से ख़ुद को लेकिन मैं बचा कर आई हूँ

जुगनू यादों के तो कुछ रह रहके चमकेंगे ज़रूर
राह में फिर भी चराग़ इक मैं जला कर आई हूँ

गर्द चेहरे पर मिरे यूँ तो उदासी की जमी
सामने दुनिया के मैं कुछ मुस्करा कर आई हूँ

श्रद्धा और विश्वास के हैं फूल पूजा के लिए
उसके चरणों में ये सर ‘देवी’ झुका कर आई हूँ