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ज़िन्दगी के तार को / धनराज शम्भु
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी के तार को तुम ने बजाया है साथी
बुझती हुई सांसों को तुम ने जगाया है साथी
ज़माना तो अक्सर हम जैसों को भूल जाता है
अपनी मोहब्बत से तुम ने हमें बहलाया है साथी
बुझते सितारों की तरह हम भी बुझ गये होते
अंधेरों में चिराग तुम ने जलाया है साथी
समय का फेर कब हो जाए किसी को मालूम नहीं
बदलते वक्त में माहौल तुम ने सजाया है साथी
कहने को तो हम सभी जी रहे है यहाँ पर
सही जीवन आज भी कोई न बता पाया है साथी ।