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ज़िन्दगी के दौर ने ऐसा है मारा क्या करें / रंजना वर्मा

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जिंदगी के दौड़ने ऐसा है मारा क्या करें।
काश मिल जाये हमें कोई दुबारा क्या करें॥

दूर तक बिखरी हुई खामोशियाँ सर धुन रहीं
लो गिरा फिर टूट कर कोई सितारा क्या करें॥

जिंदगी जीना ज़रूरी तो नहीं होता मगर
मौत में भी आज है हमको बिसारा क्या करें॥

सिंधु की ऊँची लहर टूटी हुई पतवार भी
दूर तक दिखता नहीं कोई किनारा क्या करें॥

धड़कनें खामोश हैं साँसें भी हैं ठहरी हुई
जिंदगी की चाह ने फिर भी पुकारा क्या करें॥

वो गये ऐसे न पूछा हाल ना दी कुछ खबर
बेरुखी ऐसी नहीं देखा निहारा क्या करें॥

ढ़ेर सारी हों ग़मों के ढेर थोड़ी-सी खुशी
जिंदगी का हो ही जायेगा गुजारा क्या करें॥