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ज़िन्दगी को ज़र-ब-कफ़, ज़रफाम करना सीखते / निश्तर ख़ानक़ाही
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी को ज़र-ब-कफ़, ज़रफाम करना सीखते
कौन था वो किससे हम आराम करना सीखते
वक़्त ने मोहलत न दी वरना हमें मुश्किल न था
सिरफिरी शामों को नज़रे-जाम करना सीखते
सीख लेते काश हम भी कोई कारे-सूद-मंद
शेर-गोई छोड़ देते, काम करना सीखते
खुद-ब-खुद तय हो गए शामो-सहर अच्छा था मैं
सुबह करना सीख लेते, शाम करना सीखते
क़द्र है जब शोरो-गोगा की तो हजरत आप भी
गीत क्यों गाते रहे, कोहराम करना सीखते
ज़र-ब-कफ़=मुट्ठियों में सोना
ज़रफाम=सोने जैसा रंग
नज़रे-जाम=शराब को समर्पित
कारे-सूद-मंद=लाभदायक
शेर-गोई=शेर कहना
शोरो-गोगा=शोर शराबा