भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद
कौन घूंघट उठाएगा सितमगर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद
हाथ उठते हुए उनके न देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद
फिर ज़माना-ए-मुहब्बत की न पुरसिश होगी
रोएगी सिसकियाँ ले-ले के वफ़ा मेरे बाद
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूं
उसका क्या जानिए, क्या हाल हुआ मेरे बाद