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ज़िन्दगी को शिद्दत से जिया था / प्रवीण कुमार अंशुमान
Kavita Kosh से
पीछे मुड़कर
जब कभी भी
मैं अपनी ज़िन्दगी को
देखता हूँ,
होती है
बड़ी तसल्ली
कि मेरी आँखों से
आँसुओं का
एक कतरा भी
कभी यूँ ही छलका नहीं,
न होती है
मुझे कभी किसी भी बात की शिकायत,
न होता है
मुझे किसी बात पर कोई पछतावा ही,
ये तो बस
इसी बात का इक नतीजा था
वो ज़िन्दगी को
बड़ी शिद्दत से
हर पल, हर क्षण
कतरा-कतरा
जो मैंने हर पल जिया था ।