Last modified on 16 मार्च 2012, at 23:24

ज़िन्दगी तनहा सफ़र की रात है / जाँ निसार अख़्तर

ज़िंदगी तनहा सफ़र की रात है

अपने–अपने हौसले की बात है


किस अकीदे की दुहाई दीजिए

हर अकीदा आज बेऔकात है


क्या पता पहुँचेंगे कब मंजिल तलक

घटते-बढ़ते फ़ासले का साथ है


अकीदा = श्रद्धा

बेऔकात = प्रतिष्ठाहीन