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ज़िन्दगी ता-सहर नहीं आई / रोशन लाल 'रौशन'
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ज़िन्दगी ता-सहर नहीं आई
मौत भी रात भर नहीं आई
जो गई थी तलाश में तेरी
वो सदा लौट कर नहीं आई
खो गई ख़्वाहिशों के मेले में
ज़िन्दगी फिर नज़र नहीं आई
लड़ रहा हूँ कि मर गया हूँ मैं
जंग से कुछ ख़बर नहीं आई
शहर-दर-शहर एक उम्र चले
दिल की वो रहगुज़र नहीं आई
ख़्वाब हम लोग देखते लेकिन
नींद ही उम्र भर नहीं आई
हादिसा ये हुआ यहाँ अक्सर
रात गुज़री सहर नहीं आई
पूछता हूँ गली-गली 'रौशन'
ज़िन्दगी तो इधर नहीं आई