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ज़िन्दगी बुला रही है / ब्रजमोहन

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ज़िन्दगी बुला रही है आ रे आ
सर उठा के आज तू भी मुस्कुरा
आ कि ज़िन्दगी के गीत बनके आसमान में
सूर्य बनके रोशनी बिखेर दे जहान में
हम बनें धरती के ओठों की जुबाँ ...

आ कि तू है चिमनियों के बीच से उड़ता धुआँ
आ कि तू है दर्द में डूबा हुआ इक आसमाँ
आ कि तू है ज़िन्दगी की धड़कनों का कारवाँ
आ तेरे हाथों में है सारा जहाँ ...

आ कि तू है खेत में उगती फ़सल की रागिनी
आ कि तू है आँख से ही जन्म लेती रोशनी
आ कि तेरे ही पसीने से बनी मोती ज़मीं
आ रे आ रे आ अन्धेरों को जला ...

आ कि ख़्वाबों में सुलगते धड़कनों के गीत-सा
आँधियों के बीच आ तू प्रेमियों की प्रीत-सा
मौत से लड़ते हुए आ ज़िन्दगी के गीत-सा
पर्वतों को आज कन्धे से गिरा ...

आ कि अपनी आग में जलकर हुआ ख़ुद जवाँ
आ कि तेरी आँख से झाँके सुबह की लालिमा
आ नए सूरज नई धरती नए ओ आसमाँ
इस समन्दर में नए तूफ़ाँ उठा ...