ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात / साहिर लुधियानवी
ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात
एक अन्जान हसीना से मुलाक़ात की रात
हाय ! वह रेशमी जुल्फ़ों से बरसता पानी
फूल-से गालों पे रुकने को तरसता पानी
दिल में तूफ़ान उठाए हुए जज़्बात की रात
ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात
डर के बिजली से अचानक वह लिपटना उसका
और फिर शर्म से बल खाके सिमटना उसका
कभी देखी न सुनी ऎसी तिलिस्मात की रात
ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी बरसात की रात
सुर्ख़ आँचल को दबा कर जो निचोड़ा उसने
दिल पर जलता हुआ एक तीर-सा छोड़ा उसने
आग पानी में लगाते हुए हालात की रात
ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात
मेरे नग़मों में जो बसती है वो तस्वीर थी वो
नौजवानी के हसीं ख़्वाब की ताबीर थी वो
आसमानों से उतर आई थी जो रात की रात
ज़िन्दगी-भर नहीं भूलेगी वह बरसात की रात