भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है / प्रेमचंद सहजवाला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ज़िन्दगी में कभी ऐसा भी सफर आता है
अब्र इक दिल में उदासी का उतर आता है

शहृ में खुद को तलाशें तो तलाशें कैसे
हर तरफ भीड़ का सैलाब नज़र आता है

अजनबीयत सी नज़र आती है रुख पर उस के
रोज़ जब शाम को वो लौट के घर आता है

पहले दीवानगी के शहृ से तारुफ रखो
बाद उस के ही मुहब्बत का नगर आता है

दो घड़ी बर्फ के ढेरों पे ज़रा सा चल दो
संगमरमर सा बदन कैसे सिहर आता है

जिस के साए में खड़े हो के मेरी याद आए
क्या तेरी राह में ऐसा भी शजर आता है