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ज़िन्दगी समय का थान है! / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी
समय का थान है
नापकर सौंपता जिसे
वक्त का बजाज
काल का कपड़ा कोई
तहबंद
देह के अस्तित्व पर
किसी नामालुम लम्बाई में!
ज़िन्दगी
कैंची और सुई का
सतत् संघर्ष
कतरन और सिलवन के बीच
नियति का चिर-विरोधाभास
असहाय से रफ़ूगर हम!
सिलनी ही होंगी हमें
किस्मत की कतरनें
सधैर्य
बुद्धि और विवेक के धागों से
सुख की कोरी कतरनों से
बनती नहीं पोशाक कोई
न ही बना है आज तक
दुःख के कपड़े से गर्म कोट!