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ज़िन्दगी / ज्ञान प्रकाश सिंह
Kavita Kosh से
ज़िंदगी की उलझनों में यों न गुज़रा कीजिये,
चंद लम्हे लुत्फ़-ए-क़ुदरत-ए-नज़ारा लीजिये।
उन्हें भी साँस लेने को थोड़ी जगह तो दीजिये,
हसरत-ए-दिल का गिरीबाँ यों न मसला कीजिये।
इस भरी दुनिया में केवल ग़म ही ग़म नहीं है,
जिगर के आँसुओं से गुलशन को सींचा कीजिये।
सुना नहीं पाए ग़म-ए-दिल आरज़ू उनको अगर,
दिल की ख़्वाहिशों को हँस कर भुलाया कीजिये।
रातों को नींद नहीं आती दिल बेक़रार रहता है,
उजाले में बैठ कर कुछ लम्हे बिताया कीजिये।