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ज़िन्दगी / राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
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ज़िन्दगी भी मोम-सी गलने लगी है।
जब से जहरीली हवा चलने लगी है॥
क्या करूँ इस दर्दे दिल का मैं इलाज।
दिल में फिर इक आग-सी जलने लगी है॥
आपके बिन जी के आखि़र क्या करे।
ज़िन्दगी तन्हा हमें खलने लगी है॥
आस क्या दुनिया से रक्खूँ मुझसे तो।
बच के अब छाया मिरी चलने लगी है॥
सी के लव बैठों न 'राना' जी उठो।
अब हवा तूफ़ानों में ढ़लने लगी है॥