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ज़िन्दा रहना चाहता है इनसान / बरीस स्लूत्स्की / वरयाम सिंह

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ज़िन्दा रहना चाहता है ज़िन्दा इनसान !
ज़िन्दा रहना चाहता है मौत तक और उसके बाद भी
मौत को स्‍थगित रखना चाहता है मरने तक
निर्लज्‍ज हो चाहता है कहना : तो अब

सुनना चाहता है आने वाले कल के समाचार
चाहता है उनके बारे बात करना पड़ोसी से ।
दोपहर के भोजन पर ख़ुश रखना चाहता हूँ पेट को,
मन-ही-मन उड़ता रहता हूँ एक दूसरी जगह।

अन्त तक चाहता हूँ देखना पूरी फ़िल्‍म
सीलन भरी क़ब्र में लेट जाने से पहले,
मैं नहीं चाहता कि मृत्‍यु के समाचारों में
सबसे पहले बताई गई हो मेरी मौत ।

अच्‍छा लगेगा मुझे यदि कोई युवा दु:साहसी
हिम्‍मत करे मुझे मेरे सामने कहने की : बुढ़ऊ !
शर्म नहीं आती जीए जा रहे हो अब भी
तुम्‍हें तो कब का मर जाना चाहिए था !