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ज़िन्दा रहना चाहता है इन्सान / बरीस स्लूत्स्की
Kavita Kosh से
जिन्दा रहना चाहता है जिन्दा इन्सान ।
जिन्दा रहना चाहता है मौत तक और उसके बाद भी ।
मौत को स्थगित रखना चाहता है मरने तक
निर्लज्ज हो चाहता है कहना : तो अब
सुनना चाहता है आने वाले कल के समाचार
चाहता है उनके बारे बात करना पड़ोसी से ।
दोपहर के भोजन पर ख़ुश रखना चाहता हूँ पेट को,
मन-ही-मन उड़ता रहता हूँ एक दूसरी जगह ।
अन्त तक चाहता हूँ देखना पूरी फ़िल्म
सीलन भरी क़ब्र में लेट जाने से पहले,
मैं नहीं चाहता कि मृत्यु के समाचारों में
सबसे पहले बताई गई हो मेरी मौत ।
अच्छा लगेगा मुझे यदि कोई युवा दु:साहसी
हिम्मत करे मुझे मेरे सामने कहने की : 'बुढ़ऊ'
शर्म नहीं आती जिये जा रहे हो अब भी
तुम्हें तो कब का मर जाना चाहिए था ।