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ज़िन्दा रहने का हुनर उसने सिखाया होगा / ज्ञान प्रकाश विवेक

ज़िन्दा रहने का हुनर उसने सिखाया होगा
जिसने आँधी में चराग़ों को जलाया होगा

तू ज़रा देख जमूरे की फटी ऐड़ी को
उसको रोटी के लिए कितना नचाया होगा

एक जर्जर-सी चटाई के सिवा कुछ भी न था
जाने क्या उसने मेरे घर से चुराया होगा

एक चट्टान ने पत्थर को समझकर बालक
अपनी छाती से कई बार लगाया होगा

थाप ढोलक की,डली गुड़ की दिया मिट्टी का
ख़ूब त्यौहार ग़रीबों ने मनाया होगा.