ज़ीमा जंकशन (भाग-4 / येव्गेनी येव्तुशेंको
मामी के बनाए स्वादिष्ट साग को
खाते हुए जब भी कहा मैंने
अपने को मूर्ख होते पाया
क्यूँ घूमता रहा वह बूढ़ा मेरे दिमाग में
‘मैं तुम्हारी सास नहीं’ मामी गुस्सा हुई
तुम उदास क्यों रहते हो हमेशा?
उदासी दूर करो
बदलाव के लिए मेरे साथ आओ
सहज रहो
हम कुछ रसभरियाँ देखेंगे
तीन औरतें और दो छोटे बालों वाली लड़कियाँ
और मैं
ट्रक में लदे
अकेले
फर्राटे भरते हुए
चरमराते हुए लहलहाते खेतों से खेतों तक
चमकती रंगीन मशीनें
घोड़ों की काठियाँ
अनाज की झलझलाती बालियाँ
टोपियाँ और रूमाल
टोकरी टटोल कर हमने
दूध से रोटी खाई
पहियों के पास घिरनियाँ
राकेट जैसा धमाका कर रही थीं
कान आवाज से भरे थे
सुनाई नहीं दे रहा था
संसार गुलगपाड़ा था
घूमता हुआ
हरे रंग का महाचक्र
और मैं पीले पुआल पर
कुहनियों के बल लेटा
विचारों में डूबा
रोटी तोड़ता हुआ
चुपचाप देखता और
सुनता हुआ।
नहर के किनारे से कुछ लड़के
पत्थर फेंक रहे थे
सूरज धधक रहा था
लेकिन घने बादलों से
चमकदार बूँदें बरसने लगीं
खुशनुमा मौसम!
मण्डराते-गिड़गिड़ाते
छूटती फुआरों में
हरेक चीज कुहरे में डूबी और शांत
मेरे देशवासी खाड़ियाँ पार कर रहे थे
बिना पीछे देखे हुए
खाइयाँ उतर रहे थे
हम और खाइयाँ और चमकती हुई बिजलियाँ
जंगल में बढ़े जा रहे थे
फिर से तैयार कर रहे थे
हम अपने हुजूम को
और अपने को बचाने के लिए
पाल व लंगर गाड़ रहे थे।
उसके अलावा
चालीस के आसपास की उस औरत ने
अपने को ढका नहीं
आपनी भावनाओं के साथ बैठी रही वह
सारे दिन
चुपचाप और भद्दे ढंग से खाती हुई
वह यकायक चौंकी और खड़ी हुई
दृढ़ निश्चयी युवकों के लिए कहा कुछ उसने।
ओह, वह लालची थी उत्साहित
सिर पर सफेद रूमाल पहन कर उसने
कंधे उचकाए।
दूर तक सुनाई देने वाली आवाज में
ऊँची आवाज में गाया उसने
खुश और गद् गद्
अंधेरे जंगल में नंगे पांव दौड़ती हुई
वह कँटीली झाड़ियों में नहीं अटकी
वह महान दिखी
स्वाभिमान के साथ आने वाले समय को देखती हुई
उसके चेहरे पर खरोंचें थीं
चीड़ की नुकीली पत्तियों की
वर्षा और आँसुओं में
चमकती आँखें
आखिर तुम वहाँ कर क्या रहे हो!
तुम बेवकूफ़ हो
मृत्यु को फतह कर सकते हो तुम
लेकिन अपने को बारिश के हवाले
करती रही वह
और वर्षा ने उसे उसकी छवि दी
उसने अपने खुरदरे हाथों से
अपने बालों को पीछे की ओर पलोसा
और दूर तक यूँ देखा जैसे
उसमें किसी ने कुछ देख लिया
जो आज तक नहीं देखा था किसी ने।
मैंने साचा
संसार में कुछ नहीं
लेकिन भीड़ में फर्राटे लेती हुई लारी
कुछ न था
हवा के थपेड़ों के अलावा
जमीन पर थिरकती वर्षा
और गाती हुई औरत
भूसे के भण्डार में घुसे हम
रात बिताने के लिए
झुकी हुई छत और भभकती गंध में
अनाज के सूखे छिलकों और रस भरियों के गठ्ठर
झाड़ियों की हरी पत्तियों के बीच
साँस लेते रहे
उजाले और अँधेरे के डोलते हुए शहतीरों के बीच
घोड़ों की बड़ी-बड़ी झालरें
छत से झूल रही थीं बल्लों की तरह।
सो नहीं सका
रात के संशय में
धुंधले चेहरों की परछाइयाँ
औरत की आवाज
खुसुर-फुसुर
कान ढांप दिए मैंने
लिज, लिज!
तुम नहीं जानते कैसी है जिंदगी
ओह, हाँ हमारे आसापास
कैक्टस हैं, काँटे हैं
और है एक जस्ते की छत
चीजों का धुला वसन्त
दिखता और चमकता हुआ
मेरे पास मेरे पति और बच्चे हैं
लेकिन आत्मा नहीं है मेरे पास
बेहद क्रूर
बेहद ठण्ड
और माँ पूछती हैμ
‘हो क्या गया
वह गुस्सैल नहीं
कुछ छिपा नहीं है उसमें
वह पीता है लेकिन यूँ हरेक पीता है’।
लिज, वह एक रात के बाद दूसरी रात जब भी घर आता है
पिये हुए बड़बड़ाता हुआ
खैर कुछ भी, मैं उसकी हूँ।
भद्दे ढंग से पकड़ा उसने मुझे...बिना कुछ कहे
बिना कुछ कहेμजैसे कि इंसान नहीं थी मैं
मैं चिल्लाई
और सोई नहीं
बहुत देर से नींद आई मुझे
क्या था मेरे पास उसमें घुमड़ने के लिए
क्या है...लोग सोचते हैं
चालीस वर्ष है मेरी उम्र
और लिज! मैं केवल पैंतीस की हूँ
क्या होगा
मुझमें शक्ति नहीं
यदि मेरा कोई होता
जिसे वास्तव में मैं प्यार करती
वह मुझे पीटता
यदि वह मुझे प्यार करता
मैं उससे अलग रहने की नहीं सोचूँगी
मैं सौंदर्य का ख्याल रखूँगी
मैं उसके लिए उसके पाँव धोलूँगी
मेरे प्यार
पानी पियूँगी
हाँ, वह थी बारिश और हवाओं में
कुलाचें भरती हुई
सरलताओं में गाए हुए
जोशीले संगीत की तरह
और मैं सहज और जिज्ञासु
तारीफ कर रहा था उस सहजता की
बातचीत से ऊबा हुआ
कुएँ की चरमराहट हम तक पहुँच रही थी
गाँव नींद में था
कुछ पहिए सड़क के किनारे
कीचड़ में गहरे धंस गए थे
समतल में आने के लिए तरह-तरह की आवाजों के साथ।