ज़ुबाँ पे दर्द भरी दास्ताँ चली आई
बहार आने से पहले ख़िज़ाँ चली आई
खुशी की चाह में मैंने उठाये रंज बड़े
मेरा नसीब कि मेरे क़दम जहाँ भी पड़े
ये बदनसीबी मेरी भी वहाँ चली आई
उदास रात है वीरान दिल की महफ़िल है
न हमसफ़र है कोई और न कोई मंज़िल है
ये ज़िंदगी मुझे लेकर कहाँ चली आई