Last modified on 18 जून 2020, at 17:45

ज़ुल्म का सामना करे कुछ तो / हस्तीमल 'हस्ती'

ज़ुल्म का सामना करे कुछ तो
आदमी-आदमी लगे कुछ तो

फ़ासले जितने भी जिए, उनमें
मन के ही थे गढ़े हुए कुछ तो

जिनको क़तरा लगे है दरिया सा
बादलों उनकी सोचिए कुछ तो

वक़्त का भी नहीं हो ख़ौफ़ उन्हें
ऐसे हों अपने फ़ैसले कुछ तो

वो मुसाफ़िर ही क्या जो ये सोचे
साथ दें मेरा रास्ते कुछ तो