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ज़ुल्म की इन्तिहा है / अहमेद फ़ौआद नेग़्म / राजेश चन्द्र

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ज़ुल्म की इन्तिहा है :
अड़ी हैं तलवारें जनसामान्य की गर्दन पर,
गुप्त पुलिस कुदक रही है
ख़ाली जगहों पर टिड्डियों की तरह ।

कलाकार और कलावन्त
रण्डीपना कर रहे हैं
सूचनामन्त्री के लिए,
शादियों में,
तलाक़ की कचहरियों
और शव-यात्राओं में ।

हर्षोन्मत्त हैं वे सभी
उनकी हथेलियों पर
चिकनाई लगी ही रहती है
पूरे वर्ष भर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र